अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' वाक्य
उच्चारण: [ ayodheyaasinh upaadheyaay 'heriaudh' ]
उदाहरण वाक्य
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- पं. अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कविता-आँख का...
- 16 मार्च, 1947 को अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने इस दुनिया से लगभग 76 वर्ष की आयु में विदा ली।
- 16 मार्च, 1947 को अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने इस दुनिया से लगभग 76 वर्ष की आयु में विदा ली।
- सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि हैं।
- रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी, राय कृष्णदास, पं. सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, पं. अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' आदि से मिलने का अवसर पाने लगे.
- ' निराला', 20 3 अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', 21 3 भारतेन्दु हरिश्चंद्र, 22 3 पं महावीर प्रसाद द्विवेदी, 23 3 यशपाल, 24 3 सुमित्रानंदन पंत, 25 3 मैथिलीशरण गुप्त
- बद्रीनारायण चौधरी ' प्रेमघन' ने जार्ज पंचम की स्तुति में सौभाग्य समागम, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने शुभ स्वागत, श्रीधर पाठक ने श्री जार्ज वन्दना तथा नाथूराम शर्मा 'शंकर' ने महेन्द्र मंगलाष्टक जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की रचनाएं लिखकर राजभक्ति प्रदर्शित की थी।
- बद्रीनारायण चौधरी ' प्रेमघन' ने जार्ज पंचम की स्तुति में सौभाग्य समागम, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने शुभ स्वागत, श्रीधर पाठक ने श्री जार्ज वन्दना तथा नाथूराम शर्मा 'शंकर' ने महेन्द्र मंगलाष्टक जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की रचनायें लिखकर राजभक्ति प्रदर्शित की थी।
- बद्रीनारायण चौधरी ' प्रेमघन' ने जार्ज पंचम की स्तुति में सौभाग्य समागम, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने शुभ स्वागत, श्रीधर पाठक ने श्री जार्ज वन्दना तथा नाथूराम शर्मा 'शंकर' ने महेन्द्र मंगलाष्टक जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की रचनायें लिखकर राजभक्ति प्रदर्शित की थी।
- बद्रीनारायण चौधरी ' प्रेमघन' ने जार्ज पंचम की स्तुति में सौभाग्य समागम, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने शुभ स्वागत, श्रीधर पाठक ने श्री जार्ज वन्दना तथा नाथूराम शर्मा 'शंकर' ने महेन्द्र मंगलाष्टक जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की रचनायें लिखकर राजभक्ति प्रदर्शित की थी।
- हास्य रस का सांगोपांग विवेचन करने वाले भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य शास्त्रियों ने भले ही इसे रसराज ना माना हो किंतु उसकी व्यापकता को अवश्य स्वीकार है! 'रस कलश' के रचियता महाकवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का कहना है की-'यदि श्रृंगार रस जीवन है तो हास्य रस आनंद यदि वह प्रसून है तो यह है विकास, जिससे दोनों में आधार-आधेय का सम्बन्ध पाया जाता है!'
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